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ईरान-इज़राइल तनाव से सोने में उछाल | ₹1 लाख के पार पहुँचा भारतीय बाजार में सोना

सोना क्यू महंगा हो रहा है

सोना क्यू महंगा हो रहा है

सोना क्यू महंगा हो रहा है ? – ईरान-इसराइल के युद्ध‑भय ने सोने को बनाया और महंगा

विश्व बाजारों में खली अंतर दिखाई दे रहा है – खासकर सोने में। हाल ही में सोने की कीमतों ने $3,410–$3,444 के संकरे चैनल से मजबूत ब्रेकआउट दिया है, जो तकनीकी दृष्टि से न्यूट्रल‑बुलिश चैनल माना जाता था। यह  ब्रेकआउट बड़े वॉल्यूम के साथ हुवा है

गोल्ड ब्रेकआउट का तकनीकी विश्लेषण

 भू‑राजनीतिक भय — असली ड्राइवर

ब्रेकआउट सिर्फ चार्ट का खेल नहीं है, बल्कि इरान–इज़राइल संघर्ष की बढ़ती चिंताएं इसके मूल में हैं।

अमेरिकी मोनेटरी स्थिति का पुल – प्रभाव

सोने की मांग केवल युद्ध‑भय से नहीं, बल्कि फ़ेडरल रिज़र्व की नीति और अमेरिकी डॉलर की कमजोरी से भी प्रेरित हो रही है।

युद्ध जन्य परिस्थिती से भारत में सोने के भाव पर सीधा असर

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोने की कीमतें $3,400 से $3,450 प्रति औंस के आसपास बनी हुई हैं, जो कि अपने रिकॉर्ड हाई के करीब है। बाज़ार के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस्राइल-ईरान और अमेरिका का तनाव और फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीतियाँ ऐसे ही बनी रहीं, तो सोना \$3,500 से लेकर \$3,700 प्रति औंस तक की नई ऊंचाइयों को छू सकता है

भारत में इसका सीधा असर घरेलू बाजार में देखने को मिला है। भारत के कई प्रमुख शहरों में सोमवार को 10 ग्राम सोने की कीमत ₹1,03,000 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी, जो बाद में थोड़ी गिरावट के साथ ₹1,01,500 पर स्थिर हुई (timesofindia.indiatimes.com+1economictimes.indiatimes.com)।
अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें डॉलर में होती हैं, और डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर है, इसलिए भारतीय बाजार में सोना ₹1 लाख के पार चला गया है।

इस बढ़ती कीमत का असर उपभोक्ताओं पर भी पड़ा है। छोटे ज्वैलर्स के अनुसार, महंगे सोने की वजह से ग्राहकों की बुकिंग में करीब 40% तक की गिरावट आई है।
लोग वर्तमान में खरीदारी से बच रहे हैं, और कीमतों के स्थिर होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि जब तक भू-राजनीतिक तनाव बना रहेगा, तब तक सोने की कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं और आम उपभोक्ता की खरीदारी पर असर पड़ता रहेगा। (m.economictimes.com, fxempire.com)।

 

भविष्य के संकेत

निष्कर्ष – सोने की यह रोड मैप‐ब्रेकआउट इतर तेज तकनीकी मोड़ नहीं, बल्कि विश्व युद्ध‑भय + डॉलर कमजोरी + फेड नीति द्वारा समर्थित वृहद ट्रेंड का हिस्सा है।

 

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