<d> फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग क्या है?

फ्यूचर & ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट पूरी जानकारी | डेरीवेटिव मार्केट जानकारी 2025

Option and future Basic in hindi 2025 ,वायदा बाजार (Derivative Market) को समझें

डेरीवेटिव मार्केट क्या है?

डेरीवेटिव मार्केट का निर्माण स्टॉक मार्केट में जोखिम को कम करने के लिए किया गया है। यह एक ऐसा वित्तीय साधन है, जो दो या अधिक पार्टियों के बीच किसी प्रोडक्ट की भविष्य की संभावित कीमत पर सौदा (Contract) करने की अनुमति देता है।

जैसे हमारे यहाँ सब्जी बेचने वाले या किराना स्टोर वाले बड़ी मात्रा में माल खरीदते हैं और भविष्य में बेचकर मुनाफा कमाते हैं, वैसे ही डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स डिजिटल रूप में उपलब्ध होते हैं, जिनके माध्यम से हम मुनाफा कमाने के लिए इन्हें खरीद या बेच सकते हैं। इसे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (Future Contract) कहते हैं।

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (Future Contract) क्या है?

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट वह समझौता होता है, जिसमें किसी संपत्ति (Asset) को एक निश्चित भविष्य की तारीख पर, पूर्व-निर्धारित कीमत पर खरीदने या बेचने की प्रतिबद्धता होती है।

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का उदाहरण:

अगर कोई किसान गेहूं उगाता है और उसे उगने में 2-3 महीने लगते हैं, तो वह भविष्य में कीमत में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिए आज ही किसी व्यापारी के साथ गेहूं बेचने की कीमत तय कर सकता है। यह एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का उदाहरण है।

 

 

फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट और फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में अंतर और समानता

Over The Counter Derivative (OTC): यह एक ओपन मार्केट है, जहां पार्टियां एक दूसरे से सीधे व्यवहार करती हैं। व्यवहार की जिम्मेदारी दोनों पार्टियों की होती है।

फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट और फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में एक समानता है, लेकिन मुख्य अंतर यह है कि Future Contract का व्यवहार एक्सचेंज के माध्यम से होता है, जबकि Forward Contract का व्यवहार एक्सचेंज के माध्यम से नहीं होता। एक्सचेंज के माध्यम से होने के कारण Future Contract अधिक विश्वसनीय होता है और इसमें लिक्विडिटी (तरलता) ज्यादा होती है।

 

Derivative market structure

 

 

What is Future Contract – फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को समझें

स्टॉक मार्केट में हम शेयर खरीद सकते हैं, लेकिन अगर मार्केट में मंदी आती है, तो खरीदा हुआ शेयर नीचे गिर सकता है। हालांकि, अगर आपको लगता है कि मंदी के बाद शेयर की कीमत फिर से बढ़ेगी, तो आप फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को बेचकर जोखिम को नियंत्रित कर सकते हैं।

Future Contract Structure:

डेरीवेटिव मार्केट में स्टॉक या इंडेक्स के लिए एक ही समय में तीन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट उपलब्ध होते हैं:

  1. चालू महीने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट
  2. अगले महीने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट
  3. अगले महीने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट

हर महीने के आखिरी गुरुवार को एक्सपायरी (Expiry) होती है और उसके बाद नए कॉन्ट्रैक्ट उपलब्ध होते हैं।

What is Basis in Future Contract ?

स्टॉक की कीमत स्टॉक मार्केट में हो रही खरीददारी और बिक्री पर निर्भर करती है, जिसे Spot Market (स्पॉट मार्केट) कहते हैं। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स की कीमतें और स्पॉट मार्केट की कीमत के बीच का अंतर Basis कहलाता है।

  • अगर Basis पॉजिटिव होता है, तो इसे Premium कहते हैं, जो बुलिशनेस (positive market) का संकेत होता है।
  • अगर Basis नेगेटिव होता है, तो इसे Discount कहते हैं, जो बेयरिशनेस (negative market) का संकेत होता है।

Basis = फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत – स्पॉट मार्केट की कीमत

Cost of Carry – कॉस्ट ऑफ कैरी:

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी डेट होती है, और इस कारण उसकी कीमत स्पॉट मार्केट की कीमत से ज्यादा होती है। इसे Cost of Carry कहा जाता है।

 

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडिंग के फायदे

Benifits of Future ContractsTrading 

  1. लॉन्ग पोजीशन: जब आपको लगता है कि स्टॉक की कीमत बढ़ेगी, तो आप खरीदते हैं।
  2. शॉर्ट पोजीशन: जब आपको लगता है कि स्टॉक की कीमत गिरेगी, तो आप पहले बेचते हैं।
  3. फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करने के लिए आपको पूरी कीमत देने की जरूरत नहीं होती। आप केवल Margin देकर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड कर सकते हैं।
  4. आप शेयर की डिलीवरी नहीं लेते, जिससे दलाली और अन्य खर्चों में कमी आती है।
  5. आप Cash Market की पोजीशन को फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से Hedge (नुकसान से बचाव) कर सकते हैं।

 

लॉट साइज (Lot Size):

डेरीवेटिव मार्केट में एक शेयर का व्यवहार नहीं होता। यहां एक स्टॉक के कई शेयर मिलकर एक कॉन्ट्रैक्ट बनाते हैं, और इस कॉन्ट्रैक्ट को एक्सचेंज/SEBI के नियमों के अनुसार लॉट साइज कहते हैं।

टिक साइज (Tick Size):

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत में न्यूनतम फर्क (difference) होता है, जो 5 पैसे या उसके गुणक में होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक की कीमत ₹200 है, तो खरीदी या बिक्री की कीमत ₹200.05, ₹200.10, ₹200.15 हो सकती है।

Long Position – लॉन्ग पोजीशन:

जब आपको लगता है कि भविष्य में स्टॉक की कीमत बढ़ने वाली है, तो आप उस स्टॉक को पहले खरीदते हैं। इसे Long Position कहते हैं।

Short Position – शॉर्ट पोजीशन:

जब आपको लगता है कि भविष्य में स्टॉक की कीमत घटने वाली है, तो आप उस स्टॉक को पहले बेचते हैं। इसे Short Position कहते हैं।

 

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (Option Contract) क्या है?

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की तरह ही, ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट भी डेरीवेटिव मार्केट का एक उत्पाद है। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदने पर खरीदार को भविष्य में स्टॉक खरीदने का अधिकार मिलता है, इसे Right to Buy (खरीदने का अधिकार) कहते हैं।

वहीं, ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट बेचने पर विक्रेता को स्टॉक बेचने का अधिकार मिलता है, इसे Right to Sell (बेचने का अधिकार) कहते हैं। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदने के लिए आपको Premium देना होता है और भविष्य की कीमत को Strike Price कहते हैं।

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के प्रकार

Types of Option Contracts

  1. Call Option: यदि आपको लगता है कि स्टॉक की कीमत भविष्य में बढ़ेगी, तो आप कॉल ऑप्शन खरीद सकते हैं।
  2. Put Option: यदि आपको लगता है कि स्टॉक की कीमत भविष्य में घटेगी, तो आप पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं।

 

READ MORE 

शेयर बाजार की संरचना | Indian Market Structure 2025 

ट्रेडिंग के लिए कैंडलस्टिक पैटर्न्स का प्रभावी उपयोग कैसे करें

निफ्टी साप्ताहिक और दैनिक ट्रेडिंग गाइड

 

 

Leave a Comment