मार्केट टाइमिंग रिस्क – SIP फिक्स्ड अंतराल पर निवेश करता है, जिससे मार्केट के लो लेवल्स का पूरा फायदा नहीं मिल पाता, जैसा कि एक सही समय पर किए गए Lump Sum Investment से हो सकता है।
SIP का Rupee Cost Averaging तब कम प्रभावी हो सकता है जब मार्केट लगातार ऊपर जा रहा हो, क्योंकि निवेशक उच्च कीमतों पर इकाइयाँ खरीदते हैं।
अगर मार्केट लंबे समय तक डाउनट्रेंड में रहता है, तो SIP की गई राशि भी नुकसान में जा सकती है और रिकवरी में ज्यादा समय लग सकता है।
SIP के तहत आने वाले म्यूचुअल फंड्स Expense Ratio, Management Fees, और Exit Load चार्ज कर सकते हैं, जिससे वास्तविक रिटर्न पर असर पड़ सकता है।
ऑटोमेटिक निवेश होने से निवेशक लापरवाह हो सकते हैं और अपने फंड की परफॉर्मेंस को समय-समय पर रिव्यू करना भूल सकते हैं।
SIP में निवेश की राशि आमतौर पर फिक्स होती है, जिससे इसे मार्केट के अनुसार डायनामिक एडजस्ट करना कठिन हो जाता है।
SIP का लाभ तभी मिलता है जब सही म्यूचुअल फंड चुना जाए। गलत फंड में निवेश करने से उम्मीद के अनुसार रिटर्न नहीं मिल सकता।
कुछ फंड्स में जल्द निकासी पर Exit Load लगता है, जिससे जरूरत पड़ने पर पैसा निकालने पर नुकसान हो सकता है।