भारतीय रुपये में लगातार पांचवें महीने गिरावट के कारण

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) आउटफ्लो –  फरवरी 2025 में विदेशी निवेशकों ने $3.5 बिलियन निकाले, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा।

भारत का व्यापार घाटा  (Trade Deficit) –  आयात निर्यात से अधिक बढ़ रहा है, जिससे डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपये की आपूर्ति ज्यादा हो रही है।

RBI का हस्तक्षेप –  भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये को स्थिर करने के लिए $10 बिलियन की 3 साल की डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी की, लेकिन यह गिरावट को पूरी तरह रोकने में असमर्थ रही।

भारत की आर्थिक वृद्धि दर धीमी –  देश की GDP ग्रोथ अनुमान से कम रहने की संभावना है, जिससे रुपये की कमजोरी बनी हुई है।

भारतीय शेयर बाजार में गिरावट – सेंसेक्स में 5.6% और निफ्टी में 5.9% की गिरावट से निवेशकों का विश्वास कमजोर हुआ, जिससे रुपये की मांग कम हुई।

डॉलर की मजबूती –  अमेरिकी डॉलर इंडेक्स मजबूत बना हुआ है, जिससे उभरती हुई बाजार मुद्राओं  (Emerging Market Currencies)  पर दबाव बढ़ा और रुपये का अवमूल्यन हुआ।

आयातकों की डॉलर मांग – भारतीय कंपनियां, खासकर तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयातक, डॉलर की भारी खरीदारी कर रहे हैं, जिससे रुपये की आपूर्ति बढ़ने के कारण उसकी कीमत गिर रही है।

वैश्विक व्यापार युद्ध का असर – अमेरिका द्वारा मेक्सिको, कनाडा और चीन पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ गई, जिससे निवेशकों का रुख डॉलर की ओर बढ़ा।

रुपये की गिरावट वैश्विक और घरेलू दोनों कारणों से हो रही है। निकट भविष्य में FPI प्रवाह, व्यापार घाटा, और RBI की नीतियों से रुपये की दिशा तय होगी।